अधिगम का अर्थ प्रभावित करने वाले कारक अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ UPTET/DELED
अगर आप UPTET paper I तथा UPTET paper II के बाल विकास एवं सीखने के सिद्धांत भाग के सीखने का अर्थ तथा सिद्धांत Topic से सम्बन्धित नोट्स चाहते है तो यह पोस्ट आप के लिये मददगार होगी-
अधिगम का अर्थ
अधिगम शब्द अंग्रेजी शब्द Learning का हिन्दी रूपान्तरित है | जिसका अर्थ होता है | 'सीखना' हर एक व्यक्ति बचपन से ही अपने जीवन में कुछ न कुछ सीखता ही रहता है इस सिखने की प्रक्रिया में कुछ चीजों को तो वह अनुकरण द्वारा सीखता है कुछ चीजों को वातावरण के द्वारा तथा कुछ चीजों को वह व्यवहार के द्वारा सीखता है | सीखने की इस सतत प्रक्रिया को ही अधिगम कहते है |
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक
1 परिपक्वता-
3 शारीरिक एवं मानसिक थकान-अधिगम प्रक्रिया होते-होते एक समय ऐसा भी आ जाता है जब अधिगम की प्रक्रिया धीमे हो जाती है क्योंकि जब शरीर अथवा मस्तिष्क थक जाता है तब एक निश्चित स्थिति से अधिक कार्य नहीं किया जा सकता है |
4 बुद्धि-अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों में एक करक बुद्धि भी है | सामान्य अथवा प्रभावशाली बालक की तुलना में मंद बुद्धि बालक किसी भी कार्य को जल्दी करने में असमर्थ होता है|
8 रूचि-यदि किसी भी कार्य को करते अथवा कराते समय अधिगम कर्ता उस कार्य को करने में रूचि ले रहा है इस स्थित में उस कार्य को सिखने में तेजी आयेगी और वह उसे शीघ्र ही सीख लेगा |
9 शिक्षण विधि-अधिगम क्रिया में शिक्षण विधि का महत्वपूर्ण योगदान रहता है यदि शिक्षण विधि प्रभावशाली नहीं है इस स्थित में अधिगम प्रक्रिया प्रभावित नहीं रह सकती है| जैसे- कक्षा में शिक्षक के द्वारा किया जाने वाला शिक्षण यदि प्रभावशली नहीं है इस इस स्थित में छात्र उसे समझने में असमर्थ हो जाता है|
अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ (effective method of learning in Hindi)
सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन प्रयत्न निरन्तर चलती रहती है। इस सीखने की प्रक्रिया को बालक के द्वारा विभिन्न विधियों के माध्यम से संपन्न किया जाता है। इन सीखने की प्रक्रियांओं में बालक घर से परिवार के सदस्यों की सहायता से सीखना प्रारम्भ करता है। जिस कारण परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला कहा जाता है।
बालक को सीखने में विभिन्न प्रभावशाली विधियों में वातावरण,शिक्षक तथा उसके आसपास का प्रवेश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ निम्न लिखित है।
करके सीखना विधि
इस विधि के माध्यम से बालक स्वम करके सीखने का प्रयास करता है। उसके द्वारा किया गया प्रयास सार्थक और निरर्थक दोनों रूप में हो सकता है। मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है की जो कार्य स्वम करके सीखा जाता है उसका अधिगम स्थायी और लम्बे समय तक चलता है।
जैसे- घर पर हमें कोई कार्य करते देखने पर वह उस कार्य को करने का प्रयास करता है। जब बालक उस कार्य को स्वम करके सीखता तो वह करके सीखने की विधि के अन्तर्गत आता है।
करके सीखने विधि की प्रभावशीलता
- इस विधि से अर्जित किया गया अधिगम स्थायी होता है।
- इस प्रकार का अधिगम बाल केन्द्रित अधिगम होता है।
- यह शरीरिक एवं मानसिक क्रियाशीलता अधिगम होता है।
- यह क्रिया केंद्रित अधिगम होता है।
- इस विधि द्वारा अर्जित किया गया अधिगम रूचपूर्ण होता है।
- करके सीखने विधि से बालक में विभिन्न कौशलों का विकास होता है।
करके सीखने विधि के दोष
- इस विधि के द्वारा बालक अथवा छात्रों से प्रत्येक कार्य में सफलता की आशा करना अनुचित होगा। स्वम द्वारा कार्य करके सीखने में उसके द्वारा किया गया कार्य सार्थक और निरर्थक दोनों हो सकते है।
- करके सीखने की विधि प्राथमिक स्तर पर उपयुक्त नहीं मानी जा सकती है क्योंकि प्राथमिक स्तर पर बालक में स्वम कार्य को करने की परिपक्वता नहीं होती है।
- इस विधि में बालक को प्राथमिक स्तर पर प्रयोगशाला में अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है। क्योंकि इस स्तर पर छात्रों को प्रत्येक पदार्थो की जानकारी नहीं होती है।
अनुकरण द्वारा सीखना विधि (अनुकरण विधि) सिद्धान्त,प्रभावशीलता सम्बन्धी तथ्य, दोष एवं भूमिका
अनुकरण का सामान्य शब्दिक अर्थ है- नक़ल करना। जबकि अधिगम के सम्बन्ध में अनुकरण का अर्थ दूसरो को क्रिया करते हुये देख वैसा ही सीख लेना।
बालक की अनुकरण करने की क्रिया, बालक की प्रथम पाठशाला कहा जाने वाला उसके घर से शुरू होती है जहां वह परिवार के लोगो की नक़ल करते हुये,चलना, रुक-रुक कर बोलनाऔर विभिन्न क्रियाओं को वह सीखता है।
अनुकरण के सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक हैगार्ट ने किया। इनके अनुसार अनुकरण एक सामान्य प्रवृति की क्रिया है। जिसका उपयोग मनुष्य जीवन प्रयत्न समस्याओं को सुलझाने में करता है। अर्थात हम कह सकते है की वह दुसरो की नक़ल करता रहता है। और इस तरह दूसरों की क्रियाओं की नक़ल करते हुये वह सीखता रहता है।
अनुकरण द्वारा सीखने की प्रभावशीलता सम्बन्धी तथ्य
- अधिगम रुचिपूर्ण होना चाहिये
- सामाजिक व्यवस्था का ज्ञान होना
- कौशल विकास के सरल अवसर होने चाहिये
- बालक में क्रिया के प्रति विश्वास होना चाहिये
- रुचिपूर्ण अवसर का मिलना
- प्रत्येक क्रिया को सीखने के अवसर प्राप्त होने चाहिये
अनुकरण द्वारा सिखने की विधि के दोष
- इस विधि द्वारा बालक को प्राप्त ज्ञान आधा अधूरा होता है क्योंकि बालक प्रत्येक क्रिया का ज्ञान वास्तविक रूप में नहीं कर सकता है।
- गलत संगत अथवा गलत सामाजिक व्यवस्था में रहने वाला बालक, विभिन्न प्रकार की कुरीतियों का अनुकरण कर अनेक दोषो को ग्रहण कर लेता है।
- बालक में सही अथवा गलत की पहचान न
होने से वह विभिन्न
गलत आदतों को सीख लेता
है।
निरीक्षण विधि (निरीक्षण द्वारा सीखना विधि) , प्रभावशाली तथ्य,दोष,विभिन्न भूमिका
निरक्षण विधि बालक के निरीक्षण करने के गुण को प्रदर्शित करती है। इस विधि अनुसार बालक में जितनी अधिक गहन एवं व्यापक निरीक्षण की क्षमता होगी बालक उतनी ही तीव्र गति से सीखने का प्रयास करेगा।
निरीक्षण विधि के प्रभावशीलता तथ्य
- छात्र को स्वतंत्रता
- व्यापक ज्ञान
- बाल केन्द्रित विधि
- वैज्ञानिक द्रष्टि कोण का विकास
- छात्र की रूचि के अनुसार ज्ञान
- तर्क शक्ति का विकास
- मानसिक चिन्तन को प्रोत्साहन
निरीक्षण विधि के दोष
- इस विधि से किया गया अधिगम दिशाहीन होता है
- इस विधि में बालक को अधिक महत्व दिया गया है जबकि बालक सदैव निरीक्षण के आधार पर किसी निश्चित तथ्य पर नहीं पहुँच सकता है।
- निरीक्षण विधि से बालक के पाठ्यक्रम को पूर्ण नहीं किया जा सकता
- भारतीय विद्यालयों में निरीक्षण विधि के माध्यम से अधिगम व्यवस्था उपलब्ध कराना सम्भव नहीं है जिसका प्रमुख कारण पाठ्यक्रम के अनुरूप निरीक्षण गतिविधियों की व्यवस्था में अधिक संसधान एवं धन की आवश्यकता होती है।
- निरीक्षण विधि का प्रयोग प्रत्येक विषय में व्यापक रूप से नहीं किया जा सकता
परीक्षण विधि (परिक्षण करके सीखना) प्रभावशाली तथ्य, दोष,भूमिका
परीक्षण विधि का आशय उस विधि से है जिसमें विविध प्रयोगों एवं खोजों के माध्यम से किसी नियम या सिद्धान्त की सत्यता का मापन किया जाता है। सामान्य रूप से बालक भी परीक्षण का कार्य अपने प्रारम्भिक जीवन से ही कर देता है।वह अपनी माता के प्रति अधिक विश्वास का प्रदर्शन करता है क्योंकि माता की अनेक गतिविधियाँ बालक की इच्छा को पूर्ण करने वाली होती हैं।
प्रभावशीलता सम्बन्धी तथ्य
- सार्थक ज्ञान
- तर्क एवं चिन्तन का विकास
- स्थायी अधिगम
- मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों अनुरूप अधिगम
- वैज्ञानिक द्रष्टिकोण का विकास
- क्रियाशीलता
- प्रयोग कुशलता का विकास
परीक्षण विधि के दोष
- भारतीय विद्यालयों में संस्थानों आभाव होने से विभिन्न प्रकार के सिंद्धान्तों का सत्यापन नहीं है।
- परीक्षण विधि से पाठ्यक्रम उचित समय में पूर्ण नहीं किया जा सकता।
- विद्यालयों के प्राथमिक स्तर विद्यालयों में प्रयोगशाला के आभाव में छात्रों के उचित उपयोग सम्बन्धी गतिविधियाँ सम्पन्न नहीं हो पाती है।
- सभी विषयों का परीक्षण विधि के माध्यम से सम्भव नहीं है।
सामूहिक विधि (सामूहिक विधि द्वारा सीखना) प्रमुख विधियाँ, लाभ एवं दोष
इस तरह बालको को अधिगम कराने के लिये विभिन्न सामूहिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।
प्रमुख सामूहिक विधियाँ
- सांस्कृतिक कार्यक्रम
- शैक्षिक भ्रमण द्वारा सीखना
- समूह विधि द्वारा अधिगम
- शैक्षिक प्रदर्शनों द्वारा सीखना
- सामूहिक प्रतियोगिता द्वारा अधिगम
- शैक्षिक मेलों द्वारा सीखना
- खेल द्वारा अधिगम
सामूहिक विधियों के लाभ
समूहिक विधि के निम्नलिखित लाभ है
- बालक हमेशा समूह में कार्य करने के हमेशा तत्पर रहता है। इस प्रकार सामूहिक विधि अधिगम में सहायता प्रदान करती है।
- सामूहिक विधि के अधिगम में बालको को कार्य करने का अवसर मिलता है।
- सामूहिक विधि के द्वारा अधिगम में छात्र समायोजन को सिखाता है। समायोजन के आभाव में छात्र शिक्षक, समाज, परिवार, अपने साथियों एवं विद्यालय से कुछ भी नहीं सिख सकता।
- बालक समूह में बैठ कर विभिन्न अपने सहयोगियों से सीखता है साथ ही अपनी समस्याओं को उनके सामने प्रकट कर उनका समाधान प्राप्त करता है।
- सामूहिक विधि अधिगम में प्रत्येक छात्र अपने समूह को अग्रसर करने का प्रयास करता है।
समूह विधि के दोष
- सामूहिक विधि से कार्य करने में छात्रों में उत्तरदायित्व की भावना का आभाव हो जाता है जिससे छात्र एक दूसरे पर दायित्व को सौप कर अपने दायित्व से बचने का प्रयास करता है।
- समूह विधि में मन्द बुद्धि बालकों का समायोजन नहीं हो पाता है।
- सामूहिक अधिगम में छात्र समूह के छात्रों से बात करने में व्यस्त हो जाते है उनको दिये गये कार्य पर ध्यान नहीं लगाता है।
सम्मलेन व विचार संगोष्ठी विधि
सम्मलेन व विचार संगोष्ठी विधि एक ऐसी विधि है जिससे चिंतन स्तर के अधिगम के लिये अन्तः प्रक्रिया की परिस्थिति उत्पन्न की जाती है।
विचार संगोष्ठी विधि की उपयोगिता
- इस विधि से प्रजातान्त्रिक मूल्यों का विकास होता है।
- विचार संगोष्ठी विधि से आलोचनात्मक चिन्तन का विकास होता है।
- संगोष्ठी विधि स्वतंत्र अध्ययन को प्रोत्साहित करती है।
- इस विधि के माध्यम से शिक्षा के ज्ञानात्मक एवं भावात्मक उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।
- विचार संगोष्ठी विधि से छात्रों में बोलने के कौशल का विकास होता है।
- इस विधि से प्रस्तुतीकरण एवं तर्क करने की क्षमता का विकास होता है।
- विचार संगोष्ढी विधि से छात्रों में सामाजिक तथा भावात्मक गुणों का विकास होता है।
प्रोजेक्ट विधि
प्रोजेक्ट विधि की अवधारणा जॉन डीवी के द्वारा की गयी जबकि प्रोजेक्ट विधि का प्रतिपादन किलपैट्रिक ने किया। इस विधि में शिक्षक मार्गदर्शक के रूप में काम करता है।बालक द्वारा ही किसी को प्रोजेक्ट को हल किया जाता है उद्देश्य उद्देश्य पूर्ण होता हैं।इस विधि में पता करके सीखने पर बल दिया जाता है इस विधि में प्राप्त होने वाला ज्ञान स्थाई एवं स्पष्ट होता है। प्रयोजना विधि से बालकों में तारक चिंतन अन्वेषण शक्ति का विकास होता है। आत्मनिर्भर,सामाजिक गुणों से पूर्ण होते हैं। इस विधि में हाथ से कार्य करने पर बल दिया जाता है। शारीरिक व मानसिक परिश्रम करवाया जाता है। परियोजना विधि अधिक खर्चीली तथा अधिक समय लेने वाली होती है।
- बेलार्ड के अनुसार "प्रोजेक्ट यथार्थ जीवन का एक ही भाग है जो विद्यालय में प्रयोग किया जाता है।''
- पार्कर के अनुसार "प्रोजेक्ट कार्य की एक इकाई है जिसमे छात्रों को कार्य की योजना और सम्पन्नता के लिये उत्तारदायी बनाया जाता है "
- स्टीवेन्सन के अनुसार "प्रोजेक्ट एक समस्या मूलक कार्य है,जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है"
- बेलार्ड के अनुसार "प्रोजेक्ट यथार्थ जीवन का एक ही भाग है, जो विद्यालय में प्रयोग किया जाता है"
प्रोजेक्ट का अर्थ
- प्रोजेक्ट रुचिपूर्ण होता है।
- प्रोजेक्ट क्रिया सामाजिक वातावरण में की जाती है।
- प्रत्येक प्रोजेक्ट का प्रयोजन होता है।
- प्रत्येक प्रोजेक्ट को आरम्भ के बाद पूर्ण करना भी आवश्यक होता है
प्रोजेक्ट प्रणाली की विशेषताएँ
- प्रोजेक्ट प्रणाली की निम्न लिखित विशेषताएँ होती है।
- किसी भी योजना का व्यक्तिगत तथा सामाजिक रूप से उपयोगी होना अनिवार्य है।
- योजना छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण एवं रोचक होनी चाहिए।
- योजना ऐसी होनी चाहिये की छात्रों को इसके प्रयोग में कोई कठिनाई नहीं न हो।
- योजना में विभिन्न प्रकार की क्रियाओं का समावेश होना चाहिए।
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